सती से राष्ट्रपती; भारतीय राजनिती में महिलाओं की सक्रीयता
DOI:
https://doi.org/10.7492/afkaea54Abstract
प्रस्तुत शोध पत्र में भारतीय महिलाओं की प्राचीन काल से वर्तमान तक स्थिती और भारतीय राजनीति मे सक्रियता का अध्ययन किया है प्राचीन भारत मे महिलाओं का स्थान महत्वपूर्ण था लेकिन बाद मे महिलाओं को दुय्यम रखा गया, समाज और धर्म ने चार दिवारो मे उसे जखड लिया, यह नही बल्की वेद पठण शिक्षा तथा वैचारिक आदान-प्रदान से भी उनको वंचित रखा, मनुस्मृतीने महिलाओ पर निर्बंध लगाये इस वजह से उनका मानसिक एवं भावनिक खच्चीकरण हुआ, समाज मे रूढी प्रथा कर्मकांड तथा परंपराओ मे बंदिस्त कर मानसिक और शारीरिक शोषण का शिकार बनाया. बालविवाह, सतीप्रथा जैसी क्रूर प्रचलित प्रथा से उनके जीवन मे अधिकारो को छिन लिया। महिला की इस अवस्था पर भारत मे समाजसुधारकोने आवाज उठाकर अधिकार देने का प्रयास किया, इस वजह से महिलाओ के अधिकार हेतू आंदोलन हुए इस वजह से महिलाओंको अधिकार और सन्मान मिला।
स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान ने महिलाओंको समानता का दर्जा दिया, समानता के सिद्धांत को संविधान में लागू कर मौलिक अधिकार कर्तव्य और निर्देशक सिद्धांत को प्रस्तावित किया. भारतीय संविधान ने न केवल महिलाओं को समानता का दर्जा दिया बल्की महिलाओ के पक्ष मे सकारात्मक भेदभाव के उपाय करने के लिए राज्य को सशक्त बनाया इसी वजह से स्वतंत्रता के बाद महिलाओ के जीवन के हर क्षेत्र मै भागीदारी बढी. राजनीति मे महिलाओं की सक्रियता मै उत्तरोत्तर सुधार हुआ हैं, आज पंचायत से लेकर संसद तक राष्ट्र ीय राजनीती मे बढावा मिला.
वर्तमान राजनीतिके नये आयाम बनाये जा रहे हैं. जिसमे महिलाओ का सन्मान रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है. यह उपलब्ध का लाभ लेते हुए महिलाओ ने पंचायत से राष्ट्र पती पद तक उडान भरकर अपने उन्नती के नये द्वार खोले. इस प्रकार प्राचीन भारत मे सती जानेवाली महिला आज देश की महिला महामहिम श्रीमती द्रौपदी मुर्मु राष्ट्र पती बनकर राजनीति मे सक्रिय हो गई.