महिला विकास यात्रा में नारी चेतना की भूमिका – (सुधा अरोड़ा का आलेख ‘आर्थिक आत्मनिर्भरता सामाजिक बदलाव की पहली शर्त’ के संदर्भ में)

Authors

  • 1. राजेंद्र वसंत मोरे , 2. प्रा. डॉ. प्रमोद गोकुळ पाटील Author

DOI:

https://doi.org/10.7492/vg9f1s88

Keywords:

परिवर्तनशील, आत्मनिर्भरता, विघटन, उत्थान, मुखर, विवाह-विच्छेद, नवनिर्माण, सचेत समाज

Abstract

मानव जीवन अनेक महान उद्देश्यों से बना हुआ है। इस मानव जीवन के स्त्री और पुरुष अभिन्न घटक है, इन दोनों का पर्याप्त और संतुलित विकास होना समाज के लिए महत्वपूर्ण है । साहित्य प्राचीन काल से ही मनुष्य का पथ प्रदर्शक रहा है तथा उसे उचित-अनुचित से हमेशा ही सचेत करता रहा है। साहित्यिक चेतना के माध्यम से सचेत और वैज्ञानिक जीवन की नींव रखी गई है। आधुनिक काल अनेक समस्या लेकर आया है जैसे  बेरोजगारी,अशिक्षा, भ्रष्टाचार , अत्याचार गरीबी,जनसंख़या वृद्धि,  पारिवारिक क्लेश,सामाजिक क्लेश, मानसिक बीमारियां भर भर भ्रष्टाचार अत्याचार गरीबी आदि। साहित्य में स्त्री चेतना के माध्यम से  महिला विकास यात्रा में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। स्त्री का शिक्षित होना। शिक्षित होकर आत्मनिर्भर होना यह वर्तमान समय में बेहद जरूरी है।जो समाज आत्मनिर्भर है ,वह समाज उतना ही प्रगति, स्थिर व वैचारिक दृष्टि से उतना ही उन्नत है।

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Published

2011-2025