हिंदी की महिला उपन्यासकार मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में चित्रित महिलाओं का आर्थिक संघर्ष

Authors

  • डॉ. वसीम मक्राणी Author

DOI:

https://doi.org/10.7492/rzr9fs44

Keywords:

उन्नति, आर्थिक विकास, निर्भर, दायित्व, कल्याणकारी योजना, आजादी, मुद्रा, संकल्प, आर्थिक विषमता, स्वार्थी मानसिकता एवं सामाजिक व्यवस्था

Abstract

मैत्रेयी पुष्पा हिंदी साहित्य की एक प्रतिष्ठित लेखिका हैं, जो विशेष रूप से अपनी सामाजिक और स्त्रीवादी रचनाओं के लिए जानी जाती हैं। उनका लेखन ग्रामीण भारत की महिलाओं के जीवन, उनकी समस्याओं, संघर्षों, और उनके अधिकारों पर आधारित है। उनकी कहानियाँ और उपन्यास समाज के पितृसत्तात्मक ढांचे को चुनौती देते हुए महिलाओं के स्वाभिमान और स्वतंत्रता की बात करते हैं। मैत्रेयी पुष्पा का लेखन प्रगतिशील है और ग्रामीण जीवन के यथार्थ को बेहद सजीवता से प्रस्तुत करता है। उनकी रचनाएँ महिलाओं की अंदरूनी और बाहरी लड़ाइयों को गहराई से चित्रित करती हैं। वे सामाजिक अन्याय, जातिगत भेदभाव, और स्त्रियों के प्रति हिंसा जैसे मुद्दों पर मुखर होकर लिखती हैं। भाषा में सहजता और प्रवाह है, जो पाठकों को उनकी रचनाओं से जोड़ता है।

            समाज में निवास करने वाले मनुष्यों की उन्नति आर्थिक विकास पर निर्भर होता है। प्रत्येक मनुष्य का संघर्ष रोटी, कपड़ा व मकान की प्राप्ति के लिए होता है। स्वतंत्रता से पहले देश का आर्थिक विकास अंग्रेजों के अनुसार हुआ। जिसका परिणाम देश का आम आदमी शोषित पीड़ित बनकर रहा। स्वतंत्रता के बाद आर्थिक विकास का दायित्व अपने देश के लोगों के हाथों में आया परन्तु जिस प्रकार से देश का विकास जन-समुदाय का होना चाहिए था, वह नहीं हुआ। सर्वहारा, किसान, मजदूर वर्ग की जितनी उन्नति होनी चाहिए थी उतनी नहीं हुई।

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Published

2011-2025