भारतीय लोकतंत्र में राजनैतिक दल की बदलती भुमिका –एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
DOI:
https://doi.org/10.7492/cm7h6641Abstract
राजतंत्र सामंतशाही का विरोध करने के लिए पाश्चात्य राजनैतिक धरातल पर सुविख्यात विभिन्न क्रांतियाँ हुई । जॉन लॉक, मिल, रुसो आदि पाश्चात्य राजनैतिक चितंकों ने स्वतंत्रता को अहम स्थान दिया । फ्रेंच राजनैतिक क्रांति का स्वतंत्रता, समता एवं बंधुता यह नारा था जनमत के सामने राजतंत्र एवं सामन्त तंत्र को झुकना पडा । पुंजिवाद का उगम हुआ और इसका विरोध करने के लिए मध्यम वर्ग का उगम हुआ । यही से प्रतिनिधिक शासन प्रणाली की लोकप्रियता बढने लगी । अनेक युरोपिय देशों ने लिखित संविधान के माध्यम से शासन को संचालित करने की परंपरा का आगाज किया । किंतू प्रतिनिधिक शासन प्रणाली को यथार्थ में लाने हेतु राजनैतिक दल की भुमिका के बारे में वे आशंकित थे । इसिलिए उन्होंने अपने संविधान में राजनैतिक दल का स्पष्ट तौर पर प्रावधान नही किया था । अमेरिका के संविधान निर्माताओं के बहुतांश सदस्यों ने राजनैतिक दल का कडा विरोध किया था । फेडरेलिजम एवं एन्टी फेडरेलिजम इस आधार पर ना चाहते हुये राजनैतिक दलों ने अमेरिका मे दस्तक दी ।
वॉशिंग्टन, जेफरसन, गांधीजी, जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे आदि राजनैतिक चिंतको ने राजनैतिक दल के बारे में जो आशंका व्यक्त की थी वह वास्तविक धरातल पर सत्य प्रतीत हुई । किंतु जिस तरह से भारत मे स्वतंत्रता के पश्चात कुछ दशकों के बाद राजनैतिक दल के सदस्यों का नैतिक अध:पतन हुआ वैसे हालात अमेरिका में पैदा नही हुये । इग्लैड में अलिखित संविधान होने के बावजुद राजनैतिक दल ने जिस भुमिका का वहन किया उसी कारणवश इग्लैंड के लोकतंत्र की गरिमा अभी भी दिखाई देती है । वहाँ के विपक्ष को जो सम्मान, प्रतिष्ठा प्राप्त है, वैसी प्रतिष्ठा एवं सम्मान प्राप्त करने के लिए भारत को और इंतजार करना पडेगा ।
भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों के अंतर्गत 19-3 के अनुच्छेद नुसार जो राजनैतिक दल स्थापित हुये है उनमें राष्ट्रीय, प्रादेशिक एवं पंजीकृत राजनैतिक दल है । सत्ता प्राप्त करना यह राजनैतिक दल का प्रमुख स्वाभाविक उद्देश होता है । इसके साथ-साथ नागरिकों को राजनैतिक दृष्टीकोन से जागरुक करने की प्रमुख जिम्मेदारी भी होती है । जनहित के लिए बहुमत की सरकार होना आवश्यक है किंतु राजनैतिक निर्णय निर्धारण में विपक्ष के विरोधी स्वर को नजरअंदाज करना यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए गंभीर चीज है । गांधीजी ने संसदीय शासन प्रणाली के उपर जो आलोचना की थी वह सत्य प्रतीत होती है । बहुमत के आधार पर राजनैतिक दल बहुत से विधेयकों को ध्वनी मत से पारित करते है । स्वतंत्रतापूर्व राजनैतिक दल की भूमिका एवं स्वतंत्रता पश्चात राजनैतिक दल की भूमिका इसमें बहुत अंतर आ गया है ।येनकेन प्रकारे सत्ता प्राप्त करने के लिए मतदारों को मुर्ख बनाने का काम राजनैतिक दल करते दिखलाई देते है । 2019 से 2024 तक महाराष्ट्र की राजनीति में जो राजनैतिक घटनाक्रम हुआ उससे राजनैतिक स्तर अपने निम्न स्तर पर किस तरह गया है उसका एहसास होता है ।