जल संरक्षण में भारत सरकार की पहल
DOI:
https://doi.org/10.7492/nwfh2p40Abstract
पृथ्वी के सभी जीवो के लिए जल एक बहुमूल्य संपदा है। इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जल ही जीवन है, इसके बिना सब निर्जन है। पृथ्वी पर उपलब्ध बहुमूल्य संसाधनों में जल का महत्व पूर्ण स्थान है। "जल संरक्षण का करो जतन, जल है एक अनमोल रतन"|भारत में जल संरक्षण एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता बन गई है, जहां सतत विकास, आर्थिक विकास और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन आवश्यक है। भारत सरकार ने देश भर में जल संरक्षण को बढ़ावा देने और भंडारण के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के उद्देश्य से कई पहल और योजनाएं लागू की हैं। ये प्रयास न केवल जल सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में हैं बल्कि घरों और उद्योगों को समान रूप से महत्त्वपूर्ण लाभ भी प्रदान करते हैं। डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर मानते थे कि बाढ़ नियंत्रण की जगह पानी का संरक्षण एक अनिवार्य कानून के रूप में रखा जाना चाहिए । पानी एक संपत्ति है ,जिसे प्रकृति ने बिना किसी भेदभाव के दिया है और इसे बिना भेदभाव के लोगों के बीच पहुंचाना ही संवर्धन है।
भारत में इस युग में जल नीतियां मुख्य रूप से सिंचाई को बढ़ाकर कृषि उत्पादकता बढ़ाने पर केंद्रित हैं। सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए पानी का उपयोग करने के लिए परियोजनाओं में निवेश किया गया। प्राथमिक ध्यान कृषि उत्पादन को बढ़ावा देना और भारतीय भोजन को पर्याप्त बनाना था।
70 के दशक में हरित क्रांति ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कृषि परिवर्तन किया। अधिक उपज देने वाली फसल की किस्मों और आधुनिक कृषि तकनीकों के लिए व्यापक सिंचाई की आवश्यकता होती है और इससे आधुनिक कृषि पद्धतियों की जल-गहन प्रकृति के कारण पानी की मांग में वृद्धि हुई है। गांधीजी का मानना था कि पृथ्वी ,वायु, भूमि तथा जल हमारे पूर्वजों से प्राप्त संपत्तियां नहीं है ।वह हमारे बच्चों की धरोहर है वह जैसी हमें मिली है वैसे ही उन्हें भावि पीढ़ियों को सौंपना होगा।
इस अवधि में भारत में तेजी से शहरीकरण और औद्योगीकरण देखा गया। शहरी भारत और उद्योगों में पानी की बढ़ती मांग के कारण कमजोर संसाधनों पर दबाव पड़ा और पानी की कमी पैदा हुई। जलभृतों और सतही जल निकायों के अत्यधिक दोहन के कारण ऐसी स्थिति पैदा हो गई जहां पानी की कमी ने चिंताजनक रूप धारण कर लिया।जल का प्रयोग बड़ी सावधानी से करें, क्योंकि पानी बचाना एक पूजा समान है। पानी पर सभी का समान हक है ।हम जरूरत से ज्यादा पानी खर्च करके दूसरों के हक का पानी उपयोग करते हैं । एक-एक बूंद बहुत कीमतीं है ।इसे व्यर्थ न बहाओं। 1987 में, एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन, संरक्षण और पानी के समान वितरण की आवश्यकता से निपटने के लिए राष्ट्रीय जल नीति तैयार की गई थी। यह बाद की नीतियों की आधारशिला थी जो जल क्षेत्र में सतत विकास की आवश्यकता पर आधारित थी।