नासिरा शर्मा का उपन्यास -"कुइयाँजान" में जल संकट का प्रतिबिंब

Authors

  • डॉ. वसीम मक्रानी Author

DOI:

https://doi.org/10.7492/namx3018

Abstract

नासिरा शर्मा का "कुइयाँजान’’ यह उपन्यास सन् 2005 में सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ।‘’ प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह ने इसे 2005 साल का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास कहा है।‘’ 1 नासिरा शर्मा की लेखन शैली सरल और प्रभावशाली है। उन्होंने कठिन विषयों को  मानवतावादी दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है, जिससे पाठकों को कहानी में गहरी रुचि बनी रहती है। उपन्यास का प्रवाह बहुत सटीक और गहरी सोच को जन्म देता है, जो हर पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। उनकी शैली में संवेदनशीलता और सामाजिक मुद्दों के प्रति गहरी समझ है, जो पाठक को संवेदनशील बनाती है। उपन्यास में पात्रों का विकास भी बहुत अच्छा है। हर पात्र का जल संकट से प्रभावित होना, उसकी सोच, और उसका संघर्ष पाठक के दिल को छू जाता है।

            इस उपन्यास में आज के समय में चल रही पानी की समस्या को उजागर किया है। एक महत्वपूर्ण और सामयिक विषय को उठाता है वह है पानी और उसकी समस्या। यह उपन्यास न केवल जल संकट की गंभीरता को उजागर करता है, बल्कि वह पारंपरिक जलस्रोतों, उनके महत्व, और उनके संरक्षण की आवश्यकता पर भी गहरी चिंता व्यक्त करता है।

            "कुइयाँजान" का अर्थ है "कुएं का पानी" और इसके माध्यम से लेखक ने जलस्रोतों की महत्ता और उनकी भूमिका को जीवन के बुनियादी तत्व के रूप में प्रस्तुत किया है। इस उपन्यास की पृष्ठभूमि इलाहाबाद शहर है। इलाहाबाद की मस्जिद वाली गली में बिजली चली जाने के कारण लोगों को पानी उपलब्ध नहीं होता जिस कारण वहाँ हाहाकार मच जाता है। लेखिका लिखती है,- 'मृत्यु दर दिन प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है। भारत में गांव, कस्बों, शहरों में लोग कुंओं,तालाबों और नदियों से पानी लेते हैं, जो अधिकतर गंदा और कीटाणुयुक्त होता है। उसमें प्राकृतिक रूप से पाए  जाने वाले संखिया की मिलावट होती है। पानी की कमी के कारण देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तनाव पनपते हैं’’ 2 इस से जल समस्या की वैश्विक विकरालता से साक्षात्कार होता है।

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2011-2025