भूजल प्रबंधन की परंपरागत पद्धतियां एवं सरकार की योजनाएं
DOI:
https://doi.org/10.7492/1rh99r39Keywords:
भूजल, प्रबंधन, पारंपरिक, शासकीय, दोहन संवर्धन, जलोढ, चट्टान, जलवायु, पुनर्भरण वर्षा, प्रकृतिAbstract
भूजल प्रबंधन (Ground water management)
भूजल प्रबंधन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य भूजल की स्थिरता सुनिश्चित करना है ताकि भूजल के उपयोग में शामिल प्रत्येक हित धारक को लाभ मिल सके हित धारक किसान प्रशासक वैज्ञानिक पर्यावरण विद् और समाज के उपभोक्ता हो सकते हैं। भूजल के प्रमुख सिद्धांत दक्षता स्थिरता और समानता है।
भूजल या भूगर्भिक जल :- अर्थ
भूजल धरती की सतह के नीचे चट्टानों के कण के बीच में अंतर काश और रँध्राकाश में मौजूद जल को कहते हैं । सामान्यत जब धरातलीय जल से अंतर दिखाने के लिए इस शब्द का प्रयोग सतह के नीचे स्थित जल सरफेस वाटर अंग्रेजी के (sub-surface water) के रूप में होता है इसमें मृदा जल को भी शामिल कर लिया जाता है हालांकि यह मृदा जल से अलग होता है जो केवल सत्तह के नीचे कुछ ही गहराई में मिट्टी में मौजूद जल को कहा जाता है ।
भूजल एक मीठे पानी के स्रोत के रूप में प्राकृतिक संसाधन है मानव के लिए जल की प्राप्ति का एक प्रमुख सूत्र भूजल के अंतर्गत आने वाले जल भर अंग्रेजी के (Aquafier) है जिसे कुओं और नलकूपों को द्वारा पानी निकाला जाता है।
“भूजल पृथ्वी के अंदर अत्यधिक गहराई तक रिसकर प्रविष्टि हो चुका होता है और मनुष्य द्वारा वर्तमान तकनीक का सहारा लेकर नहीं निकाला जा सकता या आर्थिक रूप से उसमें उपयोगिता से ज्यादा खर्च आएगा वह जल संसाधन का भाग नहीं है संसाधन केवल वही है जिनके दोहन की संभावना प्रबल और आर्थिक रूप से लाकर हो अत्यधिक गहराई में स्थित भूजल को जीवाश्म जल या फॉसिल वाटर कहते हैं।“(१)