महात्मा गांधी और डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर के जल प्रबंधन पर विचार: समीक्षात्मक अवलोकन

Authors

  • प्रा. डॉ. महेंद्र जयपालसिंह रघुवंशी, निखिल मनोहर तायड़े Author

DOI:

https://doi.org/10.7492/12321j47

Abstract

इस शोध पत्र का उद्देश्य जल प्रबंधन पर महात्मा गांधी और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों का तुलनात्मक विश्लेषण करना है। जल प्रबंधन का संबंध केवल प्राकृतिक संसाधन से नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और सशक्तिकरण से भी है। महात्मा गांधी और डॉ. आंबेडकर ने जल के संरक्षण, वितरण और उपयोग के संदर्भ में महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए थे, जो आज भी प्रासंगिक हैं। महात्मा गांधी ने जल के संरक्षण को एक नैतिक दायित्व के रूप में देखा। उनका मानना था कि जल का उचित उपयोग और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, समाज की जिम्मेदारी है। उन्होंने ग्राम समाज को स्वावलंबी बनाने के लिए छोटे जलाशयों और तालाबों के महत्व पर जोर दिया और जल के संतुलित वितरण की आवश्यकता को महसूस किया। गांधीजी का दृष्टिकोण सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन की ओर था, जिसमें जल के वितरण को न्यायपूर्ण और समान बनाना आवश्यक था। डॉ. आंबेडकर ने जल के प्रबंधन को एक योजनाबद्ध तरीके से चलाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने प्राकृतिक जल स्रोतों जैसे नदियों, झीलों, और जलाशयों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया। उनके अनुसार, जल का प्रबंधन करते समय जलाशयों, सिंचाई प्रणालियों और जल निकासी की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हो सके और जल संकट से बचा जा सके। डॉ. आंबेडकर ने जल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को महत्व दिया। उनके अनुसार, जल का उचित प्रबंधन सिर्फ जल संकट से बचाव के लिए नहीं, बल्कि पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। उन्होंने जल के प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए मानवता के लिए भविष्य में इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करने का पक्ष लिया।

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Published

2011-2025