भारतीय संस्कृति, समाज एवं संगीत का अंतर्सम्बन्ध

Authors

  • यश त्यागी Author

DOI:

https://doi.org/10.7492/zaeg6c81

Abstract

संगीत मानव जीवन के हर पहलू को प्राचीन काल से ही प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता आ रहा हैं। समाज के प्रत्येक कार्य में आज संगीत की महत्ता सभी को ज्ञात है। वैवाहिक कार्य हो या धार्मिक कार्य, लडाई का मैदान हो या शांन्ति के लिये कार्य या फिर कोई संस्कार संगीत की आवश्यकता एवं महत्ता प्रत्येक स्थान पर है। आदि काल में जब मनुष्य को भाषा का ज्ञान हुआ तो उसके साथ ही मनुष्य को जीवन रक्षा, समूह संगठन और कृषि आखेट के साधनों और निर्माण में निरन्तर गतिशील रहने की शक्ति दी, वही जीवन को सुखी बनाने के लिए मनोरंजन को भी जन्म दिया। जन्म से लेकर विवाह तक मानव 16 द्वारा संस्कारो का पालन करने से ये सभी संस्कार मानव जीवन का प्रमुख अंग बन गये। ये सभी संस्कार संगीत से जुड़े है। मध्ययुग तक लोक संगीत को धर्मोपासना के आन्दोलन ने प्रसार का वाहक बनाया तो पूर्व आधुनिक काल तक राष्ट्रीय नवजागरण के कार्यकर्ताओं ने माध्यम बनाया। स्वांतत्र्योत्तर आधुनिक काल में लोक संगीत सम्मेलनों, प्रदर्शनो, उत्सवांे, सांस्कृतिक समायोजनों और महोत्सवों में देश-देशान्तरों में संस्कृति कर्मी और संगीत संस्कृति जीवी समाज के लिये मूल्यांकन और पुनर्मूल्यांकन की वस्तु बन गया। संगीत ने मूलतः आत्मरंजन और फलतः लोकरंजन की भूमिका में यदि व्यक्ति परिवार समूह समुदाय और समाज को श्रेष्ठ बने रहने में व्यापक अर्थानुरूप मनोरंजन का दायित्व सर्वश्रेष्ठता से पूरा किया तो यह संगीत कला की महत्ता ही है।

Published

2011-2025

Issue

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Articles