तत्त्वमस्यादि महावाक्य से ब्रह्म उपलब्धि (सुरेश्वराचार्य के तैत्तिरीयोपनिषद्भाष्यवार्तिक के आधार पर)

Authors

  • ड. ममता स्नेही मौसुमी आखुली Author

DOI:

https://doi.org/10.7492/y96r1m82

Abstract

अखण्डैकरससच्चिदानन्दब्रह्म को प्रत्येक से ऐकात्यापत्र कराने का श्रेय 'अहं ब्रह्मास्मि' 'तत्त्वमसि' इत्यादि महावाक्यों को ही है । महावाक्यों से भिन्न किसी भी साधन की यह सामर्थ्य नहीं कि वह आत्मज्ञान करा सके । बोधोत्पत्ति में महावाक्य पूर्णतया स्वतन्त्र तथा निरपेक्ष हैं । उन्हें किसी अन्य सहकारी की अपेक्षा नहीं होती । यदि कहा जाये कि पद के अभाव में 'तत्त्वमसि' आदि वाक्य असिद्ध हैं, तो यह कथन उचित नहीं है । जैसे शुक्लकृष्णपीतलोहित-इन चार वर्णो से विशिष्ट मेरु हैं । यह वाक्य मेर्वादिका ज्ञान कराता है, वैसे ही 'तत्त्वमसीत्यादि' वाक्यों से ब्रह्मज्ञान उत्पन्न होता है

 

  1. वृ.भा.वा.2.3.80-81, वृहदारण्यकभाष्यवार्तिक-एक अध्ययन, डाँ कौशल किशोर श्रीवास्तव, अक्षयवट प्रकाशन, पृष्ठा 136

Published

2011-2025

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Articles