भाषा का प्रश्न और नई शिक्षा नीति
DOI:
https://doi.org/10.7492/408af210Abstract
भाषा का प्रश्न और नई शिक्षा नीति
डाॅ॰ प्रतिभा चैहान
शिक्षा किसी भी समाज, देश में चलने वाली निरतंर प्रक्रिया है जिस का उद्देश्य आंतरिक शक्तियों का विकास करना तथा मानवीय किसी व्यवहार को परिष्कृत करना होता है और शिक्षा नीती किसी भी देश की उन्नति का आधार होती है। किसी भी देश की भषा ही एक सशक्त पुरजोर माध्यम होती है जिस के द्वारा विज्ञान कला, संस्कृति, तकनीक, चिकित्सा आदि का शिक्षण, अध्ययन और अधिगम किया जाता है। इसलिए किसी भी शिक्षा नीति की आधार उद्देश्य, सफलता की सम्भावनाऐं इस बात पर निर्भर होती है कि वो शिक्षा के आरम्भिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षण तक विद्यार्थियों में तकनीकी, वैज्ञानिक सामाजिक ज्ञान का प्रेषण किस स्तर कर पाती है। यह हमारी शिक्षा, शिक्षा नीति, भाषा नीती, विडम्बना बना रहीं है कि आजादी के 75 वर्षो के बाद भ्ी हमारी शिक्षा नीति ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, प्रौधिगकी के पाठ्यक्रमों का े हिन्दी भाषा, मातृभाषा या भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराने में असमर्थ रही जिस का परिणाम ये रहा है कि स्कूली स्तर पर मातृभाषा, स्थानीय भाषा और हिन्दी भाषा में शिक्षा ग्रहण करने वाले विधार्थी उच्च शिक्षण में अंग्रेजी भाषा की दुर्बोधता, जटिलता के कारण तकनीकी अध्ययन में असहज, असमर्थ और असफल हो जाते है। 1986 में आई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीय भाषाओ के अस्तित्व विकास, अध्ययन को लेकर विशेष शैक्षिक योजनाएँ नहीं र्लाी थी बल्कि उस कामुख्य उद्देश्य शिक्षा और शिक्षण में तकनीक, प्रौधोगिकी और अनुसंधान का समावेश करना थां