पंजाब का लोक संगीत

Authors

  • डा॰ अनिता शर्मा Author

DOI:

https://doi.org/10.7492/h4vwme35

Abstract


लोकसंगीत का निर्माण प्रकृति की प्रेरणा तथा मानव हृदय के अंतरमन में बसे सुख और दुःख से पूरित भावों से होता है । लोकसंगीत का शाब्दिक अर्थ लोगों में प्रचलित गीत लोकसंगीत द्वारा निर्मित तथा लोगों की भावनाओं को दर्शाने वाले गीतों से है । लोकगीतों को ग्रामीणों या ग्राम्य गीत भी कहा जाता रहा है । लोकसंगीत जीवन को मूल प्रवृत्तियों के साथ जुड़ा जन्म भूमि के साथ बंधा और परम्परा की धारा के साथ घुला मिला होता है । प्रत्येक स्थान, प्रांत की अपनी निजी विशेषताएँ होती है, जो वहाँ की सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक, ऐतिहासिक तथा राजनैतिक झाँकी प्रस्तुत करती है । ठीक उसी प्रकार लोकसंगीत की चर्चा करें तो यह भी प्रांत विशेष का भिन्न-भिन्न लोकसंगीत है । भारत का हर प्रांत राज्य एक अलग सी ईकाई है और उसकी अपनी निजी विशेषताएं हैं । लोकगीत तो जीवन के हर पहलू से संबंधित होते हैं । जैसे जन्म के समय, बचपन के गीत, विवाह के गीत, वर वधू पक्ष के गीत, मृत्यु समय के गीत आदि । हर प्रांत की गायन शैलियाँ और गायन विधाएं भी अलग-अलग है जिनमें उस प्रांत की महक निहित रहती है । पंजाबी लोकगीतों की भाषा सरल होती है । चाहे कोई व्यक्ति पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ हो गाकर आनन्द अनुभव करता है । पंजाबी गीतों के विभिन्न रूप है । जैसे लोरियाँ, घोड़ियां, टप्पे, सुहाग, गिद्दा, नाच की बोलियाँ, वियोग के गीत, झूमर नाच की बोलियां, बाजरे की फसल का गीत, ऊँट (डाची का गीत) जिन्दुआ, वर्षा ऋतु का गीत, चरखे की गीत, छल्ला, का गीत आदि । विवाह पर गाए जाने वाले गीतों में हास्य उत्साह तथा शृंगार भावों से परिपूर्ण होते हैं ।

Published

2011-2025

Issue

Section

Articles