बौद्ध महायान परम्परा के साहित्य में पर्यावरण और मानवका अन्र्तसम्बन्धः एक साहित्यिक विश्लेषण

Authors

  • Monu and Dr. Amardeep Author

DOI:

https://doi.org/10.7492/97skwf27

Abstract

भौतिक प्रकृति, जीवन जगत और पर्यावरण इतना विस्तृत है कि इसको एक पहलू से नहीं समझा जा सकता है। सकारात्मक रूप से कहें तो दुनिया में जो तत्व और ताकते हैं वे हमारे शरीर-मन परिसर में भी मौजूद हैं जो हमें अपने पर्यावरण के साथ समायोजित करने में सक्ष्म बनाते हैं। प्रकृति के सार्वभौमिकों में आध्यात्मिक पहल अनिवार्य रूप से जीवन, मृत्यु और जानने की प्रक्रिया से सम्बंधित है। आज हम प्रकृति से ही तालमेल कर मौसम की भविष्यवाणी, खाद्य, उत्पादन, खान-पान, रहन-सहन, कृषि जैसी जीवन से जुड़ी भौतिक संस्कृति को जान पाए हैं। बौद्ध धर्म, धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक के साथ-साथ महायान सूत्रों में पर्यावरण के घटकों पर भी विशेष बल देता है। पर्यावरण चेतना के सन्दर्भ में महायान शाखा द्वारा महात्मा बुद्ध के उपदेशों को प्रदर्शित करना है, जिससे आज के पर्यावरण के महत्व को जाना जा सकता है। नेवार तथा तिब्बती परम्परा के अनुसार मुख्य महायान सूत्र नौ है, जो कि सन्द्धर्भपुण्डरीक, ललितविस्तार, लंकावतार, सुवर्ण-प्रकाश, गण्डव्यूह, तथागतगुहक, समाधिराज, दशभूमिश्वर एवं अष्टसहस्र प्रज्ञापारमिता सूत्र इन महायान सूत्रों को वैपुल्य सूत्र भी कहते हैं जिसमें पर्यावरण केविभिन्नआयामोंजिनमें प्रतिबिम्बित द्वीप, पर्वत, यन कन्दरा, नदी, नगरखान-पान, रहन-सहन, जड़ी-बूटियाँ, पेड़-पौधों, महासागरों, क्षेत्रों, विभिन्न वस्त्रों, कमल, दिशाओं, नागों, धातुओं, रत्नों, रंगों, जल के रंगों, ऋतुओं, 15 फूलों,पर्वतों, नदियों, झरनों, वनों, पूजा सामग्री इत्यादि कापर्यावरण का विस्तृत रूप से वर्णन देखने को मिलता है। इस शोध-पत्र का उद्देश्य बौद्ध धर्म में पर्यावरण तथा महायान शाखा के साहित्य में पर्यावरण को वर्णित करना है।

 

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2011-2025

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Articles